6 “जब मय चलत-चलत दमिश्क को जवर पहुंच्यो, त असो भयो कि दोपहर को लगभग अचानक एक बड़ी ज्योति आसमान सी मोरो चारयी तरफ चमकी। 7 अऊर मय जमीन पर गिर पड़्यो अऊर यो आवाज सुन्यो, ‘हे शाऊल, हे शाऊल, तय मोख कहाली सतावय हय?’ 8 मय न उत्तर दियो, ‘हे प्रभु, तय कौन आय?’ ओन मोरो सी कह्यो, ‘मय यीशु नासरी आय, जेक तय सतावय हय।’ 9 मोरो संगियों न ज्योति त देखी, पर जो मोरो सी बोलत होतो ओकी आवाज नहीं सुन्यो। 10 तब मय न कह्यो, ‘हे प्रभु, मय का करू?’ प्रभु न मोरो सी कह्यो, ‘उठ क दमिश्क म जा, अऊर जो कुछ तोरो करन लायी ठहरायो गयो हय उत तोख सब बताय दियो जायेंन।’ 11 जब ऊ ज्योति को तेज को मारे मोख कुछ दिखायी नहीं दियो, त मय अपनो संगियों को हाथ पकड़ क दमिश्क म आयो।
12 “तब हनन्याह नाम को व्यवस्था को अनुसार एक भक्त आदमी, जो उत रहन वालो सब यहूदियों म अच्छो नाम होतो, मोरो जवर आयो, 13 अऊर खड़ो होय क मोरो सी कह्यो, ‘हे भाऊ शाऊल, फिर देखन लग।’ उच घड़ी मोरी आंखी खुल गयी अऊर मय न ओख देख्यो। 14 तब ओन कह्यो, ‘हमरो बापदादों को परमेश्वर न तोख येकोलायी ठहरायो हय कि तय ओकी इच्छा ख जान्जो, अऊर ऊ सच्चो ख देखो अऊर ओको मुंह सी बाते सुनजो। 15 कहालीकि तय ओको तरफ सी सब आदमियों को आगु उन बातों को गवाह होजो जो तय न देख्यो अऊर सुन्यो हंय। 16 अब कहाली देर करय हय? उठ, बपतिस्मा लेवो, अऊर ओको नाम ले क अपनो पापों ख धोय डाल।’
17 “जब मय फिर यरूशलेम म आय क मन्दिर म प्रार्थना कर रह्यो होतो, त मगन भय गयो, 18 अऊर ओख देख्यो कि ऊ मोरो सी कह्य हय, ‘जल्दी कर क् यरूशलेम सी जल्दी निकल जा; कहालीकि हि मोरो बारे म तोरी गवाही नहीं मानेंन।’ 19 मय न कह्यो, ‘हे प्रभु, हि त खुद जानय हंय कि मय तोरो पर विश्वास करन वालो ख जेलखाना म डालत होतो अऊर आराधनालय म जाय क उन्ख पिटवात होतो। 20 [~3~]जब तोरो गवाह स्तिफनुस को खून बहायो जाय रह्यो होतो तब मय भी उत खड़ो होतो अऊर या बात म सामिल होतो, अऊर उन्को मारन वालो को कपड़ा की रखवाली करत होतो।’ 21 अऊर ओन मोरो सी कह्यो, ‘चली जा: कहालीकि मय तोख गैरयहूदियों को जवर दूर-दूर भेजूं।’ ”
22 हि या बात तक ओकी सुनतो रह्यो, तब ऊची आवाज सी चिल्लायो, “असो आदमी को नाश करो, ओको जीन्दो रहनो ठीक नहाय!” 23 जब हि चिल्लातो अऊर कपड़ा फेकतो हुयो अऊर आसमान म धूरला उड़ात होतो; 24 त पलटन को मुखिया न कह्यो, “येख किला म ले जावो, अऊर कोड़ा मार क जांचो, कि मय जानु कि लोग कौन्सो वजह ओको विरोध म असो चिल्लाय रह्यो हंय।” 25 जब उन्न ओख बन्दी बनाय दियो त पौलुस ऊ सूबेदार सी जो जवर खड़ो होतो, कह्यो, “का यो ठीक हय कि तुम एक रोमी आदमी ख, अऊर ऊ भी बिना दोषी ठहरायो हुयो, कोड़ा मारो?”
26 सूबेदार न यो सुन क पलटन को मुखिया को जवर जाय क कह्यो, “तय यो का करय हय? यो त रोमी आदमी आय।”
27 तब पलटन को मुखिया न ओको जवर आय क कह्यो, “मोख बताव, का तय रोमी आय?”
28 यो सुन क पलटन को मुखिया न कह्यो, “मय न रोमी होन को पद बहुत रुपया दे क पायो हय।”
29 तब जो लोग ओख जांचन पर होतो, हि तुरतच ओको जवर सी हट गयो; अऊर पलटन को मुखिया भी यो जान क कि यो रोमी आय अऊर मय न ओख बान्ध्यो हय; डर गयो।
30 दूसरों दिन ओन सच जानन की इच्छा सी कि यहूदी ओको पर कहाली दोष लगावय हंय, ओको बन्धन खोल दियो; अऊर महायाजक अऊर पूरी महासभा ख जमा होन की आज्ञा दी, अऊर पौलुस ख खल्लो ले जाय क उन्को आगु खड़ो कर दियो।
<- प्रेरितों 21प्रेरितों 23 ->