6 अल्लाह को याद रख, इससे पहले कि चाँदी का रस्सा टूट जाए, सोने का बरतन टुकड़े टुकड़े हो जाए, चश्मे के पास घड़ा पाश पाश हो जाए और कुएँ का पानी निकालनेवाला पहिया टूटकर उसमें गिर जाए। 7 तब तेरी ख़ाक दुबारा उस ख़ाक में मिल जाएगी जिससे निकल आई और तेरी रूह उस ख़ुदा के पास लौट जाएगी जिसने उसे बख़्शा था।
8 वाइज़ फ़रमाता है, “बातिल ही बातिल! सब कुछ बातिल ही बातिल है!”
9 दानिशमंद होने के अलावा वाइज़ क़ौम को इल्मो-इरफ़ान की तालीम देता रहा। उसने मुतअद्दिद अमसाल को सहीह वज़न देकर उनकी जाँच-पड़ताल की और उन्हें तरतीबवार जमा किया। 10 वाइज़ की कोशिश थी कि मुनासिब अलफ़ाज़ इस्तेमाल करे और दियानतदारी से सच्ची बातें लिखे।
11 दानिशमंदों के अलफ़ाज़ आँकुस की मानिंद हैं, तरतीब से जमाशुदा अमसाल लकड़ी में मज़बूती से ठोंकी गई कीलों जैसी हैं। यह एक ही गल्लाबान की दी हुई हैं।
12 मेरे बेटे, इसके अलावा ख़बरदार रह। किताबें लिखने का सिलसिला कभी ख़त्म नहीं हो जाएगा, और हद से ज़्यादा कुतुबबीनी से जिस्म थक जाता है।
13 आओ, इख़्तिताम पर हम तमाम तालीम के ख़ुलासे पर ध्यान दें। रब का ख़ौफ़ मान और उसके अहकाम की पैरवी कर। यह हर इनसान का फ़र्ज़ है। 14 क्योंकि अल्लाह हर काम को ख़ाह वह छुपा ही हो, ख़ाह बुरा या भला हो अदालत में लाएगा।
<- वाइज़ 11