1 दश्ते-नजब के कनानी मुल्क अराद के बादशाह को ख़बर मिली कि इसराईली अथारिम की तरफ़ बढ़ रहे हैं। उसने उन पर हमला किया और कई एक को पकड़कर क़ैद कर लिया। 2 तब इसराईलियों ने रब के सामने मन्नत मानकर कहा, “अगर तू हमें उन पर फ़तह देगा तो हम उन्हें उनके शहरों समेत तबाह कर देंगे।” 3 रब ने उनकी सुनी और कनानियों पर फ़तह बख़्शी। इसराईलियों ने उन्हें उनके शहरों समेत पूरी तरह तबाह कर दिया। इसलिए उस जगह का नाम हुरमा यानी तबाही पड़ गया।
4 होर पहाड़ से रवाना होकर वह बहरे-क़ुलज़ुम की तरफ़ चल दिए ताकि अदोम के मुल्क में से गुज़रना न पड़े। लेकिन चलते चलते लोग बेसबर हो गए। 5 वह रब और मूसा के ख़िलाफ़ बातें करने लगे, “आप हमें मिसर से निकालकर रेगिस्तान में मरने के लिए क्यों ले आए हैं? यहाँ न रोटी दस्तयाब है न पानी। हमें इस घटिया क़िस्म की ख़ुराक से घिन आती है।”
6 तब रब ने उनके दरमियान ज़हरीले साँप भेज दिए जिनके काटने से बहुत-से लोग मर गए। 7 फिर लोग मूसा के पास आए। उन्होंने कहा, “हमने रब और आपके ख़िलाफ़ बातें करते हुए गुनाह किया। हमारी सिफ़ारिश करें कि रब हमसे साँप दूर कर दे।”
10 इसराईली रवाना हुए और ओबोत में अपने ख़ैमे लगाए। 11 फिर वहाँ से कूच करके ऐये-अबारीम में डेरे डाले, उस रेगिस्तान में जो मशरिक़ की तरफ़ मोआब के सामने है। 12 वहाँ से रवाना होकर वह वादीए-ज़िरद में ख़ैमाज़न हुए। 13 जब वादीए-ज़िरद से रवाना हुए तो दरियाए-अरनोन के परले यानी जुनूबी किनारे पर ख़ैमाज़न हुए। यह दरिया रेगिस्तान में है और अमोरियों के इलाक़े से निकलता है। यह अमोरियों और मोआबियों के दरमियान की सरहद है। 14 इसका ज़िक्र किताब ‘रब की जंगें’ में भी है,
16 वहाँ से वह बैर यानी ‘कुआँ’ पहुँचे। यह वही बैर है जहाँ रब ने मूसा से कहा, “लोगों को इकट्ठा कर तो मैं उन्हें पानी दूँगा।” 17 उस वक़्त इसराईलियों ने यह गीत गाया,
18 उस कुएँ के बारे में जिसे सरदारों ने खोदा, जिसे क़ौम के राहनुमाओं ने असाए-शाही और अपनी लाठियों से खोदा।”
21 इसराईल ने अमोरियों के बादशाह सीहोन को इत्तला भेजी, 22 “हमें अपने मुल्क में से गुज़रने दें। हम सीधे सीधे गुज़र जाएंगे। न हम कोई खेत या अंगूर का बाग़ छेड़ेंगे, न किसी कुएँ का पानी पिएँगे। हम आपके मुल्क में से सीधे गुज़रते हुए शाहराह पर ही रहेंगे।” 23 लेकिन सीहोन ने उन्हें गुज़रने न दिया बल्कि अपनी फ़ौज जमा करके इसराईल से लड़ने के लिए रेगिस्तान में चल पड़ा। यहज़ पहुँचकर उसने इसराईलियों से जंग की। 24 लेकिन इसराईलियों ने उसे क़त्ल किया और दरियाए-अरनोन से लेकर दरियाए-यब्बोक़ तक यानी अम्मोनियों की सरहद तक उसके मुल्क पर क़ब्ज़ा कर लिया। वह इससे आगे न जा सके क्योंकि अम्मोनियों ने अपनी सरहद की हिसारबंदी कर रखी थी। 25 इसराईली तमाम अमोरी शहरों पर क़ब्ज़ा करके उनमें रहने लगे। उनमें हसबोन और उसके इर्दगिर्द की आबादियाँ शामिल थीं।
26 हसबोन अमोरी बादशाह सीहोन का दारुल-हुकूमत था। उसने मोआब के पिछले बादशाह से लड़कर उससे यह इलाक़ा दरियाए-अरनोन तक छीन लिया था। 27 उस वाक़िये का ज़िक्र शायरी में यों किया गया है,
28 हसबोन से आग निकली, सीहोन के शहर से शोला भड़का। उसने मोआब के शहर आर को जला दिया, अरनोन की बुलंदियों के मालिकों को भस्म किया।
29 ऐ मोआब, तुझ पर अफ़सोस! ऐ कमोस देवता की क़ौम, तू हलाक हुई है। कमोस ने अपने बेटों को मफ़रूर और अपनी बेटियों को अमोरी बादशाह सीहोन की क़ैदी बना दिया है।
30 लेकिन जब हमने अमोरियों पर तीर चलाए तो हसबोन का इलाक़ा दीबोन तक बरबाद हुआ। हमने नुफ़ह तक सब कुछ तबाह किया, वह नुफ़ह जिसका इलाक़ा मीदबा तक है।”
31 यों इसराईल अमोरियों के मुल्क में आबाद हुआ। 32 वहाँ से मूसा ने अपने जासूस याज़ेर शहर भेजे। वहाँ भी अमोरी रहते थे। इसराईलियों ने याज़ेर और उसके इर्दगिर्द के शहरों पर भी क़ब्ज़ा किया और वहाँ के अमोरियों को निकाल दिया।
33 इसके बाद वह मुड़कर बसन की तरफ़ बढ़े। तब बसन का बादशाह ओज अपनी तमाम फ़ौज लेकर उनसे लड़ने के लिए शहर इदरई आया। 34 उस वक़्त रब ने मूसा से कहा, “ओज से न डरना। मैं उसे, उस की तमाम फ़ौज और उसका मुल्क तेरे हवाले कर चुका हूँ। उसके साथ वही सुलूक कर जो तूने अमोरियों के बादशाह सीहोन के साथ किया, जिसका दारुल-हुकूमत हसबोन था।” 35 इसराईलियों ने ओज, उसके बेटों और तमाम फ़ौज को हलाक कर दिया। कोई भी न बचा। फिर उन्होंने बसन के मुल्क पर क़ब्ज़ा कर लिया।
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